मेले एवं उत्सव
अल्मोड़ा के मेले एवं उत्सव
अल्मोड़ा के मेले और त्योहार न केवल धार्मिक सामाजिक और सांस्कृतिक आग्रह की अभिव्यक्ति हैं, बल्कि इन्होने लोक संस्कृति को बनाए रखा है और ये लोगों की आर्थिक गतिविधियों का केंद्र भी है। इसके अलावा पहाड़ी इलाकों के दूर स्थित स्थानों पर, विशेषकर जहां संचार मुश्किल है|और पहाड़ या पानी से जमीन कट रही है,एसे सुविधाजनक केंद्रों की आवश्यकता होती है जहाँ लोग एकदूसरे से मिल सके तथा वस्तुएं विनिमय और बिक्री हो सके|अल्मोड़ा जैसे जिले में कई घाटियां हैं, जो आम आवश्यकताओं की उनकी आपूर्ति के लिए पूरी तरह से ऐसी मिलन स्थलों पर निर्भर हैं, जिसके फलस्वरूप यहाँ कई मेले या सामयिक बाजार हैं।ये दो प्रकार के हैं|एक अंग्रेज़ी प्रांतीय शहर में “बाजार दिवस” के अनुरूप साप्ताहिक सम्मेलन को “पन्थ” कहा जाता है।वे एक साधारण प्रकार के हैं, और इनका धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है|वार्षिक मेले “मेला” के नाम से जाना जाते हैं और हमेशा धार्मिक विचारों और रीति-रिवाजों के साथ हुए हैं।वे अक्सर कुछ मशहूर स्थानीय मंदिर में केन्द्रित होते हैं| जो एक फसल कटने पर वार्षिक रूप लगाये जाते हैं| व्यापार, आनंद और धर्म इन दावतो में उत्साहपूर्वक जुड़ रहे हैं, जो निस्संदेह जीवन के मुख्य अंग हैं।इन कई मेलों में से निम्नलिखित में काफी महत्वपूर्ण हैं:-
नंदा देवी उत्सव
इस क्षेत्र का सबसे अच्छा ज्ञात मेला, चन्द शासको के समय से ही सितंबर के महीने में अल्मोड़ा शहर में आयोजित किया जाता है| यह माना जाता है कि ‘नंदा ‘ चंद वंश की कुल देवी थीं|शब्द ‘नंद’ शाब्दिक अर्थ समृद्धि है।अल्मोड़ा में ‘नंदा’ का मंदिर सोलहवीं शताब्दी में, इस जगह के तत्कालीन शासक द्योत चंद ने बनाया था|वर्तमान में यह मंदिर उत्सव का मुख्य हिस्सा है।उत्सव की अवधि पांच दिन है और इस उत्सव में करीब पचास हजार लोग/ पर्यटक आते हैं।
दशहरा महोत्सव अल्मोड़ा
अक्टूबर में हिंदुओं का प्रसिद्ध त्योहार दशहरा रामायण में वर्णित लंका या सीलोन के दस मुखी राक्षस रजा रावण के उपर भगवान राम की जीत का स्मरण कराता हैं,अल्मोड़ा शहर में एक बहुत ही अनोखे तरीके से मनाया जाता है।आस-पास के क्षेत्र से लगभग दस से पंद्रह हजार पर्यटक इस महोत्सव में समिलित होने के लिए अल्मोड़ा शहर में आते हैं| सच्चाई की विजय के प्रतीक स्वरुप शहर के लगभग सभी मोहल्लों में विभिन्न राक्षसों के कलात्मक तरीके से पुतले बनाये जाते हैं |अंत में एक सामाजिक समारोह में ये सभी पुतले जलाए जाते हैं।आम तौर पर यह त्योहार अक्टूबर के महीने में मनाया जाता है।
जागेश्वर श्रावणी महोत्सव
महान धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का त्यौहार,जागेश्वर श्रावणी महोत्सव 15 जुलाई से 15 अगस्त तक आयोजित किया जाता है। 8 वीं-9 वीं सदी में निर्मित भगवान जागनाथ का मंदिर,भारत में भगवान शिव के बारह ‘ज्योतिलिंग’ में से एक है।ज्योतिष महत्व के होने के कारण प्राचीन समय से जागेश्वर में 124 छोटे और बड़े मंदिरों समूह है|यह त्यौहार कुमाऊनी समाज के लिए महान धार्मिक महत्व का है।इस एक महीने के लंबे महोत्सव में पर्यटकों की संख्या का दैनिक आना लगभग दस हज़ार रहता है।
अन्य मेले
इन के अलावा, इस क्षेत्र में विभिन्न अन्य स्थानीय त्योहारों का आयोजन किया जाता है, जो धार्मिक या अन्यथा इस क्षेत्र की विरासत, कला और संस्कृति से जुड़े हैं।
इनमें से प्रसिद्ध हैं-:
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव,रानीखेत, नैनीताल और रानीखेत नंदा देवी महोत्सव, शरद ऋतु महोत्सव नैनीताल और रानीखेत, स्याल्दे- बिखौती मेला द्वाराहाट, सोमनाथ मेला,मासी, बिन्सार महादेव का महाशीवरात्री समारोह, साउनी, हदखान, चिलियानौला भिकियासैंण पुण्यगिरि नवरात्री मेला, देविधुरा रक्षा बंधन मेला, दूनागिरी मेला, मुस्तमानु मेला , कपिलेश्वर मेला इत्यादि